उसी अमलतास के तले बुलाना था मुझे आखिरी बार? हमारी कहानी का अंत कहीं और भी तो हो सकता था.
उस आखिरी मुलाकात को कितनी बार दिमाग में रिप्ले किया होगा मैंने!
साढ़े नौ साल बीत गए उस दिन को - कई शहर, कई साथी, कई मंजिलें - पर वक़्त-बेवक़्त आँखों के आगे तुम्हारा चेहरा तैर जाता था, तो यूँ लगता था कि तमाम उम्र का दर्द एक झटके से सीने में उतर आया हो.
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तुम्हारा बस चलता तो हर दिन बस उसी अमलतास के रंग के कपड़े पहनाते मुझे! और शिफॉन से भी तो कुछ ज्यादा ही प्यार था ना तुम्हे उन दिनों?
तुम भी भूले तो नहीं होगे मुझे! कहा करते थे, 'हमारी कहानी पे एक नॉवेल लिखा जा सकता है'. पर ऐसे सैड एंडिंग वाले नॉवेल ज्यादा बिकते नहीं. सोचती थी अब की बार मिलेंगे तो एक नया अंजाम देंगे इस कहानी को - उसी अमलतास के तले जो आज भी अपनी हैप्पी एंडिंग के इंतज़ार में है.
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और फिर तुम्हारा उस शौपिंग कॉम्प्लेक्स में अचानक मिल जाना! तुम खुश से ज्यादा हैरान लग रहे थे मुझे देख कर, जैसे किसी भूत को देख लिया हो. बोलने की सारी ज़िम्मेदारी मुझपे ही डाल दी. खैर तुम हमेशा से ही कम बोलते थे और मेरे पास भी हज़ार बातें थी करने के लिए. मेरे लिए तुम्हारे "हाँ, हूँ" भी दुनिया भर के लोगों की तमाम बातों से बढ़कर थे हमेशा से.
तुम्हारे वज़न बढ़ जाने और कपड़े पहनने का अंदाज़ ना बदलने की बातों के दौरान, कब वो आ के खड़ी हो गयी मैंने देखा ही नहीं. मैं तो आसमान में उड़ रही थी. और जब तुमने उसका तार्रुफ़ करवाया तो लगा ग्रैविटी ने बड़ी ज़ोर से मुझे धरती पे वापस ला पटका. तो ये थी हमारी असल आखिरी मुलाक़ात. शुक्र है शौपिंग कॉम्प्लेक्स की गैर-रोमैंटिक ज़मीन पर थी.
बाई द वे, वो पीली शिफॉन की सारी काफ़ी फ़ब रही थी उस पर.
24 comments:
बेहतरीन .
मुझे नहीं पता था तुम इतना अच्छा fiction भी लिखती हो. पर हैरानी नहीं होनी चाहिए , बातें बनाना तो तुम्हे हमेशा से आता था :)
hmmm... thank you :) offline ye bhi bataaiyega ki kya kamiyaan hain, jinko sudhara ja sake :)
Wah!
Badhiya laga. Short, crisp, complete! :)
@Prateek:
Thank you! :)
pahli baar aai hu is blog par aur ye post sach me acchi lagi
Brilliant..Poetry in Prose..
@couldbeanyname:
Thank you :)
तुम्हारा बस चलता तो हर दिन बस उसी अमलतास के रंग के कपड़े पहनाते मुझे! और शिफॉन से भी तो कुछ ज्यादा ही प्यार था ना तुम्हे उन दिनों?
तुम खुश से ज्यादा हैरान लग रहे थे मुझे देख कर
बोलने की सारी ज़िम्मेदारी मुझपे ही डाल दी.
बाई द वे, वो पीली शिफॉन की सारी काफ़ी फ़ब रही थी उस पर.
you know by now i am fascinated by this post. Has happened to almost all sometime or another. But what i like is the way you have so concisely put what is in itself a subject of a full novel.. My fav lines i highlighted above. Take a bow.
तुम्हारा बस चलता तो हर दिन बस उसी अमलतास के रंग के कपड़े पहनाते मुझे! और शिफॉन से भी तो कुछ ज्यादा ही प्यार था ना तुम्हे उन दिनों?
तुम खुश से ज्यादा हैरान लग रहे थे मुझे देख कर
बोलने की सारी ज़िम्मेदारी मुझपे ही डाल दी.
बाई द वे, वो पीली शिफॉन की सारी काफ़ी फ़ब रही थी उस पर.
you know by now i am fascinated by this post. Has happened to almost all sometime or another. But what i like is the way you have so concisely put what is in itself a subject of a full novel.. My fav lines i highlighted above. Take a bow.
Thanks a lot :) I could write a sequel of this story some time, maybe
nahin sequel pata nahin.. jo rishta bikhar na tha, bikhar gaya..
jis ki aawaz mein silvat ho, nigahon mein shikan, aisi tasveer ke tukde nahin joda karte..
...beautiful !! ...well written...refreshing...'sondhi mitti ki khushboo ho jaise !!
...beautiful !! ...well written...refreshing...'sondhi mitti ki khushboo ho jaise !!
कनुप्रिया जी, हार्दिक बधाईयां
सामान्य तौर पर अच्छे लेख पढ़ कर खुद में ही खुश हो लेता हूँ, इस बार लगा कि बधाई नहीं दूंगा तो ये क़र्ज़ रह जायेगा.... बेहद उम्दा लेखनी है आपकी |
मझे नहीं पता ये सच है या कल्पना है ... जो भी है, आपने बुना बहुत खूब |
@couldbeanyname
kya baat kahi hai :)
@AbidZaidi1
thank you so much! :)
@नवीन कुमार पाठक
शुक्रिया! कल्पना ही है :)
umdaa... bahut umdaa...
You seem to be influenced by gulzar sahab.
too good to read....:)
http://santhosh-vijay.blogspot.in/2013/05/the-iron-lady-of-oil-collected.html
Lovely...
Thanks everyone for your comments and compliments :)
Likhna teri kalam se usse,
Shayad Khuda isliye ruka tha....
क्या खूब लिखा है आपने...शब्द नहीं हैं ..इस रचना के लिए..और जो सबसे बढ़िया मुझे लगा ..जो एक बात आपने बीच में लिख दी है कि.."...मेरे लिए तुम्हारे "हाँ, हूँ" भी दुनिया भर के लोगों की तमाम बातों से बढ़कर थे हमेशा से."..यकीं मानिये की ' हाँ-हूँ 'जैसे शब्दों में इतना वजन जो आपने डाल दिया है...ऐसा पहले कभी पढ़ा नहीं..
इस पंक्ति मात्र ने भीतर की मौलिकता को बचाये रखने क लिए, जिसका कि अस्तित्व अक्सर खतरे में लगता है आजकल , प्रेरित किया है... यूँ की अगर कोई चाहे तो 'हाँ-हूँ' तो क्या ..फिर आपकी ख़ामोशी को भी खूब पढ़ सकता है...
देरी से पढ़ने को मिला..पर मुझे ख़ुशी है कि ऐसा कुछ मिला..आशा करता हूँ कि आप ऐसे ही बढ़िया लिखती रहेंगी..आल थे बेस्ट.
-दिव्यदीप्त
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