Wednesday, March 07, 2012

अमलतास

उसी अमलतास के तले बुलाना था मुझे आखिरी बार? हमारी कहानी का अंत कहीं और भी तो हो सकता था. 

उस आखिरी मुलाकात को कितनी बार दिमाग में रिप्ले किया होगा मैंने! 

साढ़े नौ साल बीत गए उस दिन को - कई शहर, कई साथी, कई मंजिलें - पर वक़्त-बेवक़्त आँखों के आगे तुम्हारा चेहरा  तैर जाता था, तो यूँ लगता था कि तमाम उम्र का दर्द एक झटके से सीने में उतर आया हो.

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तुम्हारा बस चलता तो हर दिन बस उसी अमलतास के रंग के कपड़े पहनाते मुझे! और शिफॉन से भी तो कुछ ज्यादा ही प्यार था ना तुम्हे उन दिनों? 

तुम भी भूले तो नहीं होगे मुझे! कहा करते थे, 'हमारी कहानी पे एक नॉवेल लिखा जा सकता है'. पर ऐसे सैड एंडिंग वाले नॉवेल ज्यादा बिकते नहीं. सोचती थी अब की बार मिलेंगे तो एक नया अंजाम देंगे इस कहानी को - उसी अमलतास के तले जो आज भी अपनी हैप्पी एंडिंग के इंतज़ार में है. 
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और फिर तुम्हारा उस शौपिंग कॉम्प्लेक्स में अचानक मिल जाना! तुम खुश से ज्यादा हैरान लग रहे थे मुझे देख कर, जैसे किसी भूत को देख लिया हो. बोलने की सारी ज़िम्मेदारी मुझपे ही डाल दी. खैर तुम हमेशा से ही कम बोलते थे और मेरे पास भी हज़ार बातें थी करने के लिए. मेरे लिए तुम्हारे "हाँ, हूँ" भी दुनिया भर के लोगों की तमाम बातों से बढ़कर थे हमेशा से.

तुम्हारे वज़न बढ़ जाने और कपड़े पहनने का अंदाज़ ना बदलने की बातों के दौरान, कब वो आ के खड़ी हो गयी मैंने देखा ही नहीं. मैं तो आसमान में उड़ रही थी. और जब तुमने उसका तार्रुफ़ करवाया तो लगा ग्रैविटी ने बड़ी ज़ोर से मुझे धरती पे वापस ला पटका. तो ये थी हमारी असल आखिरी मुलाक़ात. शुक्र है शौपिंग कॉम्प्लेक्स की गैर-रोमैंटिक ज़मीन पर थी.

बाई द वे, वो पीली शिफॉन की सारी काफ़ी फ़ब रही थी उस पर.

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