Wednesday, February 29, 2012

Hijr (Javed Akhtar)

कोई शेर कहूँ
या दुनिया के किसी मौज़ूं* पर
मैं कोई नया मज़मून* पढूँ
या कोई अनोखी बात सुनूँ
कोई बात
जो हँसने वाली हो
कोई फ़िक़रा* 
जो दिलचस्प लगे
या कोई ख़याल अछूता सा 
या कहीं मिले
कोई मंज़र
जो हैरां कर दे
कोई लम्हा
जो दिल को छू जाए
मैं अपने ज़हन के गोशों* में
इन सबको सँभाल के रखता हूँ
और सोचता हूँ
जब मिलोगे
तुमको सुनाऊँगा ।

[
हिज्र = separation
मौज़ूं = subject
मज़मून = article, write-up
फ़िक़रा = sentence
गोशों = corners
]

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