ये किसकी हक़ीक़त जी रहे हो?
क्या ऊबते नहीं!
देखो, उस पार -
नज़्में पनपने के लिए तुम्हारी हथेलियों के इंतज़ार में हैं
जो किरदार बन-बिगड़ रहे हैं,
कितनी कहानियाँ बुन चुके तुम्हारे इर्द-गिर्द
आओ,
कि रंग भरे मौसम थिरक रहे हैं तुम्हारे लिये
शहर, जो तुम्हारे क़दमों तले चल रहे हैं - बस और उजड़ रहे हैं
दुनिया ज़िंदा है हर ओर,
और तुम हो कि साँस ले रहे हो, बस!
ये जो तुम गुज़ार रहे हो, ये तुम्हारी हक़ीक़त है,
या किसी और की 'वर्चुअल रिऐलिटी'?
7 comments:
just lovely, words heart touching n thought provoking..
"सरल और भावपूर्ण।"
Beautiful words. Wonderful weaving!
And I love the LabAzad effort.
Happy raho :-)
~ Time B-)
Thank you AaDee, Himanshu!
Thank you Time! Surprised to see you here :)
Thought if we could catch up, may be! Didn't know if email would be a good idea.
Again, LabAzad is such a wonderful idea, and very maturely done. Feel proud of you.
Thank you! It's a work of love :)
Where can I contact you?
This gmail, or the same old
:-)
Post a Comment