भाग - १
लड़का जितना बड़ा कमीना हो, मधुमिता को उतना ही भाता था । उसका सबसे नया प्यार, सुधांशु, अव्वल दर्जे का निकम्मा था (खैर, मेरी तो उसके हर दोस्त के बारे में तक़रीबन यही राय थी) । पर जिस तरह से सुधांशु उससे से पेश आता था, कितनी ही बार मैंने खुद को उसको मारने से रोका होगा ।
वक़्त के साथ शायद कुछ अक़्ल मधुमिता में भी आ रही थी, या शायद सुधांशु के कमीनेपन का असर था; पर इन दिनों वो कुछ अलग ही नज़र आ रही थी । सुधांशु की दिन-ओ-दिन बढ़ती शिकायतों की लिस्ट छोटी होते-होते अब तक़रीबन ग़ायब हो चुकी थी । ये withdrawal symptoms मैं पहले भी देख चुका था। ये प्यार भी अब चंद ही दिनों का ही मोहताज था । पर साथ ही कुछ था, जो हर बार से अलग था । उसका मुझसे बात करने का संजीदा लहज़ा, देखने का ढंग - पता नहीं क्या था, जो अब जब भी हम साथ होते, किसी नयी ही सतह पे दिल को छू जाता था ।
उन्ही दिनों, एक और बड़ी खुशख़बरी मुझे मिली । आख़िर जिस dream job के लिए मैं पिछले एक साल से तैयारी कर रहा था - वहां से बुलावा आ ही गया था । पंद्रह दिनों के अन्दर मुझे हैदराबाद के लिए निकलना था । उस रात हमने बहुत देर तक celebrate किया । रात के क़रीब दो बज रहे होंगे । हम फ़र्श पर लेटे हुए थे, हथेलियाँ ठन्डे संगमरमर को छूती हुईं --- उसको बहुत पसंद था । शायद नशे का असर था या उससे दूर जाने का ख़याल, अचानक ही मेरे मुँह से निकल गया - 'शादी करोगी मुझसे?' एक मिनट के लिए तो मैं खुद भी भौचक्का रह गया, इस बेवकूफ़ी पर । पर फिर लगा, एक न एक दिन तो कहना ही था, आज से अच्छा मूड और मौका कहाँ मिलता ।
उसके 'तुम पागल हो गए हो क्या?' ने मुझे वापस धरातल पर ला खड़ा किया, 'तुम्हे पता है मेरे और सुधांशु के बारे में!!'
'पर… तुम सीरियस ही कब होती हो?'
'इस बार हूँ… '
'पर वो एक नंबर का गधा है । तुम तो खुद ही कहती हो, he's a jerk?'
'शायद इसीलिए … मुझसे वजह मत पूछो, मैं खुद तुमसे इतने दिनों से बात करना चाहती थी । हर बार सब तुमसे ही बताया,
इस बार जब बताना सबसे ज़रूरी था, पता नहीं क्यूँ हिम्मत ही नहीं हुई । '
वो अब रो रही थी । मैंने हज़ार बार उसके आँसू पोंछे थे, पर आज पता नहीं क्यूँ बहुत चिढ़ सी हुई । लगा, कितनी खोखली है ये, मैं भी क्या सोच रहा था । बस, मैं उठा और कमरे में जा के दरवाज़ा भड़ाम से बंद कर दिया ।
वो हमारी आख़िरी मुलाक़ात थी ।
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भाग - २
हैदराबाद । नया शहर, नए लोग । पंद्रह रातों में जी भर रो कर और आत्महत्या के बारे में सोच-सोच कर दिल, दिमाग़ सब खाली हो चुका था । इस अजनबी शहर में आ कर उस खालीपन के अलावा कोई था भी नहीं मेरे दिन और रात भरने के लिए । ऐसे में मुझे मिली मीता । मीता - मेरी coworker - एक बच्चे के जैसी नादान और दुनिया की चालबाजियों से कोसों दूर । पहले-पहल तो मेरे cynical दिमाग़ को यक़ीन ही नहीं आया कि कोई इतना सुलझा हुआ भी हो सकता है - ख़ास तौर पर ऐसा ख़ुशशक्ल इंसान ।
मीता को मैंने सब कुछ बता दिया था, मधुमिता के character flaws को थोड़ा छुपाते हुए - क्यूंकि वो भी बता देने पर मैं निश्चित तौर पर गधा नज़र आता । एक बात ये भी थी, कि एक intense love story वाला background होने से मैं मीता के लिए कुछ ज्यादा desirable हो जाऊँगा और उसकी सहानुभूति पाना कुछ आसान, इतनी समझ थी मुझमें । एक बार को कुछ अपराध-बोध भी हुआ उसे ऐसे manipulate करते हुए, पर मैं दोबारा सब कुछ पा के हारना नहीं चाहता था, सिर्फ़ अपनी अच्छाई का भरम रखने के लिए ।
बहरहाल, ऐसी कोई नौबत आई नहीं और मीता को मुझसे प्यार भी हो गया, और हम में प्यार का इकरार भी हो गया ।मेरे मधुमिता के नौ साल के obsession को ग़ायब होते नौ हफ्ते भी नहीं लगे - हालाँकि मैं इसमें कुछ credit मधुमिता के खोखलेपन को भी देता हूँ । मन ही मन मैंने उसे Madame Bovary नाम से बुलाना शुरू कर दिया था । पता नहीं अचानक मधुमिता के लिए उपजी ये घृणा और मीता के लिए उमड़ा प्यार सच्चा था या सिर्फ़ एक reflex; पर मैं दिन में दस बार भगवन को शुक्रिया कहने को ज़रूर रुकता था, मेरी जान बचाने के लिए । मुझे अपनी ख़ुशकिस्मती पर यक़ीन ही नहीं हो रहा था -- मानो मेरे बिना कुछ किये-धरे किसी ने मेरी ज़िन्दगी का chaos हटा के सब कुछ क़रीने से सजा दिया हो ।मीता सिर्फ़ मेरी थी और मैं उसका ।
मीता के लिए किसी को अपने इतने क़रीब आने देना एक बहुत बड़ी बात थी । अपनी निज़ी ज़िन्दगी को लेकर वो बहुत ही guarded थी । तो जब अपने birthday पर उसने मुझे अपने घर पर बुलाया, ये उसके लिए विश्वास का एक बड़ा क़दम था। उसका घर भी उसका ही एक extension था - सब कुछ क़ायदे से लगा हुआ, balcony में कुछ गमले, एक बड़ा सा bookshelf । हर चीज़ अपनी जगह पर । 'कमाल है! तुम अगर मधुमिता का घर देख लो तो पागल हो जाओ । वहां कुछ भी ढूँढ पाना impossible है' - ये बोलते हुए मैंने कुछ सोचा ही नहीं।
बस, मानो एक ब्लास्ट ही हो गया । मीता को इतने गुस्से में मैंने कभी नहीं देखा था - 'तुमको पता भी है तुम क्या कर रहे हो? तुम मेरे बहाने हर दिन सिर्फ़ उसे याद कर रहे हो। वो ऐसा कहती है वो ऐसा करती है.… अच्छी-बुरी जैसी भी है, तुम्हारे दिमाग़ में सिर्फ़ वही है । मैं कुछ भी कर लूँ मुझे हमेशा एक yardstick से नापा जाएगा, और मैं उसके लिए तैयार नहीं हूँ । और मुझे नहीं लगता कि तुम खुद उसके अलावा अभी किसी और के लिए तैयार हो । ' इससे पहले कि मेरा ताज्जुब और गुस्सा ख़त्म हो, और मैं कुछ बोल पाऊं - 'एक बात और, मधुमिता ने तुमसे कभी झूठ नहीं बोला - तुमसे अच्छा-बुरा कभी कुछ नहीं छुपाया । इतना यक़ीन प्यार की हद है । '
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भाग - ३
उस दिन के बाद मीता और मैं कई बार मिले ।लेकिन जो एक दरार आ गयी थी, उसको भरना नामुमकिन था, ये हम दोनों जानते थे । इसलिए जब उसको US जाने का offer आया तो न उसने रुकने की इच्छा जताई, न मैंने उसको रोकने की कोशिश की ।
चार महीने और बीत गए, पर मधुमिता पर मेरा गुस्सा कम नहीं हो रहा था । और कितनी बार उसके चलते मुझे सब कुछ खोना पड़ेगा?
तो इसलिए उस दिन जब घंटी बजने पर दरवाज़ा खोल, और सामने मधुमिता को देखा, तो एक बार कुछ कहते ही नहीं बना । I still hated her. दो साल हो गए थे, और ऐसे-कैसे वो बिना कुछ बताये, बिना पूछे, यहाँ चली आई है? किस अधिकार से?
पहली बात उसने ही कही, 'ऐसे भी कोई जाता है बिना बताये, बिना पूछे? मरवाओगे एक दिन तुम मुझे!'
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4 comments:
bahut achchha likha hai tumne. i loved it.
my fav are "लड़का जितना बड़ा कमीना हो, मधुमिता को उतना ही भाता था","मन ही मन मैंने उसे Madame Bovary नाम से बुलाना शुरू कर दिया था", "इतना यक़ीन प्यार की हद है", "और कितनी बार उसके चलते मुझे सब कुछ खोना पड़ेगा?" and "मरवाओगे एक दिन तुम मुझे"
I can see some connection with your earlier blog too. It would be great if you write on Madhumita's life during those 2 years.
Thank you! :)
Don't know if it's possible to spin off so many stories from these two characters, but I'll try
heart-touching..itna yakeen pyaar ki had hai..great liners :)
this one is really non-fictional...
good work.
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