Wednesday, February 29, 2012

Hijr (Javed Akhtar)

कोई शेर कहूँ
या दुनिया के किसी मौज़ूं* पर
मैं कोई नया मज़मून* पढूँ
या कोई अनोखी बात सुनूँ
कोई बात
जो हँसने वाली हो
कोई फ़िक़रा* 
जो दिलचस्प लगे
या कोई ख़याल अछूता सा 
या कहीं मिले
कोई मंज़र
जो हैरां कर दे
कोई लम्हा
जो दिल को छू जाए
मैं अपने ज़हन के गोशों* में
इन सबको सँभाल के रखता हूँ
और सोचता हूँ
जब मिलोगे
तुमको सुनाऊँगा ।

[
हिज्र = separation
मौज़ूं = subject
मज़मून = article, write-up
फ़िक़रा = sentence
गोशों = corners
]

Friday, February 17, 2012

Rewa - I

सर्दियों की सुबह का वो वक़्त होता है ना - जब आपको ज़बरदस्ती उठाया जा रहा हो, और आप "पाँच मिनट और" कहके दूसरी ओर करवट ले कर सो जाते हैं - रीवा शहर दिन के उसी वक़्त जैसा है. जागा हुआ, पर उनींदा.

Sorry Shaktimaan! (Facebook version)

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