Friday, May 08, 2015

नाम, चेहरा, आवाज़


नाम बदले जा रहे हैं शहरों के
गलियों के, सड़कों के, योजनाओं के
वो जो तुम्हारा लम्बा सा नाम  था (जिसे तुम बासी कहते थे),
क्या बदल चुके हो तुम?
उस नाम का कोई मिलता नहीं

कहते हैं शहर का चेहरा बदल रहा है
बूढ़ा हो रहा है ये
नए फ्लाई-ओवर्स की लकीरें
नए अपार्टमेंट्स के धब्बे
नज़र आने लगे हैं
तुम्हारा भी चेहरा, कुछ तो बदला होगा मान के चलती हूँ

इस शहर के शोर के बीच
इस बहुमंजिला के सन्नाटे में
करोड़ों पदचापों में
कहाँ है? वो, जो कभी न गुमने वाली
कभी न बदलने वाली आवाज़ थी तुम्हारी

तुमको ढूँढ़ती हूँ मैं


(गुलज़ार के "नाम ग़ुम जाएगा" से प्रेरित )

2 comments:

Saras said...

अच्छा लिखा है :)
शुरू में मुझे लगा तुमने गुलज़ार की कोई कविता पोस्ट की है

harkatien said...

बहुत खूब लिखा है..
#मेटा :)

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